Thursday, October 22, 2015

रावण दहन नहीं शहादत दिवस

रावण दहन नहीं शहादत दिवस


महिषासुर प्रतिमाImage copyrightASUR ADIVASI WISDOM DOCUMENTATION INITIATIVE
Image captionमैसूर में लगी महिषासुर की मूर्ति भारत में असुरों के सम्मान का प्रतीक बनी हुई है.
झारखंड में नेतरहाट की पहाड़ियों पर बसे असुर आदिवासी विजयादशमी (दशहरा) को महिषासुर की पूजा करेंगे. उनकी पूजा झारखंड के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले के काशीपुर प्रखंड में भी होगी.
यहां साल 2011 से महिषासुर का शहादत दिवस मनाया जा रहा है.
असुर महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं. इस जनजाति की संख्या तेज़ी से घट रही है. झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में भी असुर आदिवासियों की बस्तियां हैं.
महिषासुर शहादत दिवस मनाते आदिवासी.Image copyrightASUR ADIVASI WISDOM DOCUMENTATION INITIATIVE
असुरों में कम ही लोग पढ़े-लिखे हैं.
एकमात्र असुर कथाकार सुषमा असुर ने बताया कि महिषासुर का असली नाम हुडुर दुर्गा था. वह महिलाओं पर हथियार नहीं उठाते थे. इसलिए दुर्गा को आगे कर उनकी छल से हत्या कर दी गई.
वह कोई युद्ध नहीं था. वह आर्यों-अनार्यों की लड़ाई थी. इसमें महिषासुर मार दिए गए.
सुषमा कहती हैं, ''मैंने स्कूल की किताबों में पढ़ा है कि देवताओं ने असुरों का संहार किया. हमारे पूर्वजों की सामूहिक हत्याएं कीं.''
सुषमा असुरImage copyrightASUR ADIVASI WISDOM DOCUMENTATION INITIATIVE
उन्होंने कहा, ''हमारे नरंसहारों के विजय की स्मृति में ही हिंदू दशहरा जैसे त्यौहार मनाते हैं. इसलिए, हम अगर महिषासुर की शहादत का पर्व मनाएं, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.''
आदिवासी मामलों पर लिखने वाले अश्विनी पंकज बताते हैं कि महिषासुर सिर्फ झारखंड में नहीं पूजे जाते. उनकी पूजा छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के अलावा दक्षिण में भी होती है.
Image copyrightASUR ADIVASI WISDOM DOCUMENTATION INITIATIVE
कर्नाटक के मैसूर में उनकी विशाल प्रतिमा भी लगी है. असुर बच्चे मिट्टी से बने शेर के खिलौनों से खेलते तो हैं, लेकिन उनके सिर काट कर.
उनका विश्वास है कि शेर उस दुर्गा की सवारी है, जिसने उनके पुरखों का नरसंहार किया था.
पंकज कहते हैं, ''महिषासुर को खलनायक बताने वाले लोगों के उनके नायकत्व की भी पढ़ाई करनी चाहिए.''
साल 2008 की विजयादशमी में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने रांची के मोराबादी मैदान में होने वाले रावण दहन के कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया था. उनका कहना था कि रावण आदिवासियों के पूर्वज हैं. वे उनका दहन नहीं कर सकते.
Image copyrightASUR ADIVASI WISDOM DOCUMENTATION INITIATIVE
Image captionधनबाद के निरसा में पिछले साल हुए महिषासुर शहादत दिवस की फाइल फोटो.
पुरुलिया ज़िले के काशीपुर में महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन करने वाले चरियन महतो ने बीबीसी को बताया कि शिखर दिशोम खेरवार विर लाक्चर कमिटी के तहत इस उत्सव का आयोजन होता है.
इसमें शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं. सन 97 से ही यह उत्सव मनाया जा रहा है. लेकिन 2011 से इसका आयोजन बड़े स्तर पर हो रहा है.
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http://www.bbc.com बाट साभार 

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