तंत्रमंत्र व अंधविश्वास कानूनी अपराध : भंते बुद्घ
हिलसा(नालंदा),निज प्रतिनिधि : शनिवार को अनुमंडल मुख्यालय हिलसा स्थित उपकारा के कैदियों के अंधविश्वास को दूर करने पहुंचे राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य भंते बुद्घ प्रकाश ने कहा कि तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक, ताविज, प्रार्थना एवं धार्मिक विश्वास पर इलाज करना कानूनी अपराध है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी अपने फै सले में ऐसा कहा है। उन्होंने कहा कि अंधविश्वास के जाल में अनपढ़ ही नहीं पढ़े-लिखे लोग भी फंसे हैं। अंधविश्वास राष्ट्र के विकास में बड़ा बाधक है। इसके चक्कर में लोग आर्थिक एवं सामाजिक शोषण का शिकार हो रहे हैं। अंधविश्वास भगाओ देश बचाओ अभियान पर निकले भंते बुद्घ प्रकाश ने कहा कि आज हम 21वीं सदी से गुजर रहे हैं और यह युग विज्ञान का है। ऐसे में टीवी चैनलों पर भी नजर सुरक्षा कवच, सिद्घ माला, सिद्घ अंगूठी, धन प्राप्ति यंत्रों का व्यापार अंधविश्वास के नाम पर चल रहा है। जो देश के करोड़ों होनहार बच्चों के भविष्य पर खतरा है। उन्होंने कैदियों को दो फीट की तलवार को मुंह में डालकर, तलवार से हाथ को काटकर, बिना माचिस के आग को जलाने जैसे दर्जनों करतबों को दिखाने के साथ उन तरीकों को बताते हुए कहा कि टोटका, भूत-प्रेत, डायन, तंत्र-मंत्र कमजोर दिमाग की उपज है और हर घटना के पीछे का कारण होता है। इस मौके पर जेल अधीक्षक मनोज कुमार के अलावे काराकर्मी व तमाम कैदी मौजूद थे।
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अंधविश्वास आधारित अपराधों के नियंत्रण हेतु अभियान – एक नज़र
विश्वरंजन
पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़
अभियान क्यों ?ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों में निरक्षरता, परंपरागत सोच और तद्-केंद्रित जीवन दृष्टि, तर्क आधारिक मानसिकता के अभाव, वैज्ञानिक सत्यता की जानकारी के अभाव में आज भी कई तरह की अवैधानिक, अमानवीय व असामाजिक अंधविश्वास प्रचलित हैं । इनमें टोनही, डायन, झाड़-फूँक की आड़ में ठगी, धन दोगूना करने की चालाकियाँ, गड़े धन निकालना, शारीरिक, मानसिक आपदाओं को हल करने के लिए गंडे ताबीज, चमत्कारिक पत्थर एवं छद्म औषधियों का प्रयोग कर धन कमाना आदि प्रमुख हैं । इसके परिणाम स्वरूप महिला प्रताड़ना एवं हिंसा, धोखेबाजी से धन उगाही, चिकित्सा वर्जना के कारण असमय मृत्यु की घटनाओं की संभावना बढ़ जाती हैं, जो समाज के साथ-साथ पुलिस एवं कानून व्यवस्था के लिए चुनौतियाँ खड़ी करती हैं।
वर्तमान में अंधश्रद्धा के कारण समाज में उत्पन्न होनी वाली चुनौतियों और दुष्परिणामों की रोकथाम के लिए कई तरह के कानून प्रावधान भी लागू हैं यथा -औषधि और जादू उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम -1955,भारतीय दंड संहिता ( धारा 420 एवं अन्य), छत्तीसगढ़ में विशेष तौर पर टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम-2005 आदि । इसके बावजूद कानूनी प्रावधानों के व्यापक प्रचार-प्रसार का अभाव, सामाजिक एवं स्वयंसेवी हस्तक्षेप एवं पहल की कमी अंधविश्वास से उपजीं कई बड़ी ऐसी घटनाओं की सूचना पुलिस या प्रशासन तक पहुँच ही नहीं पाती जो मूलतः अवैधानिक एवं अमानवीय प्रकृति की होती हैं । इसमें ग्रामों में बैगा-गुनिया आदि के प्रभावी-पांरपरिक पकड़ जैसी नकारात्मक भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है । इन वैगाओं के प्रभाव एवं स्वयं ऐसे अंधश्रद्धा से ग्रसित होने के कारण ग्राम कोटवार भी ऐसे संभावित हादसाओं की गोपनीय सूचना पुलिस थानों में देने से बहुधा कतराते हैं । ऐसे में, इन संवेदनशील मुद्दों पर घटना के पूर्व औऱ घटना के बाद भी सम्यक कार्यवाही करने में पुलिस कमजोर हो जाती है ।
निष्कर्ष यही कि ऐसे अंधविश्वास न केवल निराधार एवं अवैज्ञानिक हैं बल्कि ये कई तरह अवैधानिक, असामाजिक, अमानवीय अपराधों के कारण भी हैं । ये अंधविश्वास पुलिस के समक्ष निरंतर कानूनी कार्यवाहियों की संभावना को कई कोणों से प्रोत्साहित करते हैं । एक ओर जहाँ, ऐसे अंधविश्वासों की आड़ में अपराध कारित होते हैं, दूसरी ओर ऐसे अपराधों को पारंपरिक मूल्यों के अनुरूप वैध ठहराकर गाँवों के प्रभु वर्गों द्वारा पुलिस को इससे दूर रखा जाता है ।
अतः इन परिस्थितियों के निपटने के लिए एवं अंधविश्वास के समूल निवारण हेतु सचेत एवं तत्पर कानूनी कार्यवाही के साथ-साथ एक सामाजिक अभियान भी आवश्यक है जिसे स्वयंसेवी आधार पर संचालित किया जा सकेगा ।
अभियान का लक्ष्य –
- राज्य में टोनही प्रथा के कारण होने वाले अपराध के दर को शून्य पर लाना ।
- राज्य में पुलिस विभाग के फील्ड अधिकारियों का उन्मुखीकरण ।
- राज्य में टोनही आदि अंधविश्वासों के बरक्स सामाजिक वातावरण तैयार करना ।
- टोनही आदि अपराधिक प्रवृति के खिलाफ मानव संसाधन को प्रशिक्षित कर दक्ष बनाना ।
- राज्य के सभी ग्रामों में टोनही सहित अंधविश्वास के खिलाफ वैज्ञानिक चेतना का प्रसार ।
- अपराधिक प्रवृति वाले अंधविश्वासों की रोकथाम के लिए कारगर सूचना नेटवर्क बनाना ।
अभियान की अवधि – एक वर्ष ( 1 मार्च 2009 से 29 फरवरी 2010 )
अभियान की रूपरेखा –राज्य स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स का गठन –राज्य भर में टोनही आदि प्रचलित अंधविश्वासों को केवल कानूनी या पुलिस कार्यवाही से नियंत्रित नहीं किया जा सकता । इसके लिए चरणबद्ध और समयबद्ध स्वयंसेवी अभियान अधिक कारगर होगा, जिससे ऐसी अंधविश्वासों के ख़िलाफ सामाजिक वातावरण तैयार किया जा सके । इस अभियान का क्रियान्वयन राज्य स्तर पर गठित राज्य पुलिस टास्क फ़ोर्स द्वारा किया जायेगा। राज्य पुलिस टास्क फ़ोर्स के पदेन अध्यक्ष पुलिस महानिदेशक होंगे । राज्य स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स अभियान हेतु रणनीतियों का निर्धारण, संचालन, समीक्षा, मानिटरिंग, प्रोत्साहन, प्रेरणा एवं वांछित सहयोग उपलब्ध कराने का कार्य करेगा । यह टास्क फ़ोर्स पुलिस मुख्यालय में एक प्रकोष्ठ की तरह कार्य करेगा । इस टास्क फ़ोर्स में प्रमुख, राष्ट्रीय सेवा योजना प्रमुख, रेड क्रास सोसायटी, स्वयंसेवी चिकित्सक, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, विज्ञान-शिक्षक, रंगकर्मी, साहित्यकार एवं वरिष्ठ संपादक, महिला संगठनों की कार्यकर्ता आदि, जो स्वयंसेवी भाव से धीरे-धीरे जुड़ते जायेंगें, सम्मिलित हो सकेंगे । इस टास्क फोर्स में पुलिस अधिकारियों के अलावा उन स्वयंसेवी युवाओं को भी रखा जायेगा जो पूर्व में ऐसे किसी सामाजिक जन जागरण अभियानों में संबंद्ध रहे हों ।
जिला स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स का गठन –जिले भर में अभियान के संचालन के लिए जिला स्तर पर एक पुलिस टास्क-फ़ोर्स का गठन किया जायेगा, जिसके पदेन अध्यक्ष संबंधित पुलिस अधीक्षक होंगे । यह टास्क फ़ोर्स जिला पुलिस कार्यालय में एक प्रकोष्ठ की तरह कार्य करेगा । इस प्रकोष्ठ को कार्यालयीन एवं अन्य आवश्यक संसाधन पुलिस अधीक्षक द्वारा उपलब्ध कराया जा सकेगा । इस टास्क फ़ोर्स का गठन पुलिस अधीक्षक करेंगे जिसमें प्रमुख रेडक्रास सोसायटी, स्वयंसेवी चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद्, रंगकर्मी, साहित्यकार एवं पत्रकार, महिला संगठनों की कार्यकर्ता आदि होंगे । इस टास्क फोर्स में अनिवार्यतः उन युवाओं को भी रखा जाये जो पूर्व में ऐसे किसी सामाजिक जन जागरण अभियानों में संबंद्ध रहे हों । (ऐसे सदस्य कों किसी भी राजनीतिक दल का अक्रिय या सक्रिय सदस्य नहीं होना चाहिए । ) पुलिस अधीक्षक द्वारा जिला स्तरीय पुलिस टास्क फ़ोर्स के नियमित कार्यों को एक समन्वयक द्वारा संपादित किया जायेगा जिसका चयन पुलिस अधीक्षक द्वारा जिला मुख्यालय में पदस्थ विभाग किसी योग्य एवं स्वयंसेवी अधिकारी में से किया जा सकेगा, जो अपने कार्यों के अलावा उक्त अभियान को गति देने में पुलिस अधीक्षक को सहयोग देंगे ।
अनुविभागीय/थाना स्तरीय पुलिस टास्क फोर्स का गठन –अनुविभाग में आने वाले गाँवों में अभियान संचालन के लिए अनुविभागीय स्तर पर एक पुलिस टास्क-फ़ोर्स का गठन जिला पुलिस टास्क फोर्स की तरह किया जायेगा, जिसके पदेन अध्यक्ष संबंधित अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस होंगे । यह टास्क फ़ोर्स अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस कार्यालय में एक प्रकोष्ठ की तरह कार्य करेगा जिसे कार्यालयीन एवं अन्य आवश्यक संसाधन अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस के द्वारा उपलब्ध होगा । इसी तरह थाना स्तर पर पुलिस टास्क फ़ोर्स का गठन पुलिस अधीक्षक के मार्गनिर्देशन संबंधित थानेदार करेंगे । इन निचली इकाईयों में भी जिला स्तरीय टास्क फ़ोर्स की तरह स्वयंसेवी युवाओं को सम्मिलित किया जायेगा । ये टास्क फ़ोर्स अपने अपने क्षेत्रों में अभियान का क्रियान्वयन, संचालन, समीक्षा, मानिटरिंग एवं प्रोत्साहन कार्य करेगें।
टास्क फ़ोर्स के कार्य –
- अपने क्षेत्र में प्रचलित टोनही सहित ऐसे अन्य अंधश्रद्धाओं की पहचान करना जो कानूनी के समक्ष अवैधानिक या अप्रिय स्थितियों की संभावनाओं को बढ़ावा देती हैं ।
- प्रत्येक अंधश्रद्धा के समूल निराकरण हेतु वातावरण निर्माण के लिए अधिकतम् संभावित सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, वैधानिक, शैक्षिक चिकित्सागत पहलों का आंकलन, क्षेत्र की वास्तविकताओं के अनुरूप रणनीतियों का निर्धारण एवं उनका चरण बद्ध ढंग से सम्यक क्रियान्वयन ।
- क्षेत्र में वैज्ञानिक यथार्थ, सामाजिक चेतना, कानूनी प्रावधानों, तर्काश्रित आस्था एवं विश्वास को प्रोत्साहित करने वाली गतिविधियों का आयोजन, प्रचार-प्रसार एवं प्रोत्साहन एवं ऐसी स्वयंसेवी संगठनों को सहयोग।
- अभियान की नियमित मासिक समीक्षा बैठकों का आयोजन, आगामी गतिविधियों के संचालन हेतु दिशाबोध, नयी परिस्थितियों, अनुभवों, संभावनाओं के आधार पर नये कारगर क़दमों का निर्धारण ।
- अभियान क्रियान्वयन हेतु आवश्यक संसाधनों तथा उसकी पूर्ति के लिए जिलों में उपलब्ध एवं संभावित विभिन्न प्रकार के वांछित तथा उपयुक्त शासकीय/अशासकीय/सामाजिक/सांस्कृतिक/स्वयंसेवी ट्रस्टों, संगठनों के संसाधनों का सम्यक आकलन, संपर्क एवं दोहन (उदाहरण के तौर पर, टोनही प्रथा वाले ग्रामों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपचार शिविर, चिकित्सा परामर्श, ट्रिक्स एवं वैज्ञानिक सत्यों के प्रदर्शन के प्रशिक्षकों हेतु साक्षरता समिति से कार्यकर्ताओं का चिन्हाँकन, पंचायत विभाग के माध्यम से पंचायती राज कार्यकर्ताओं का उन्मुखीकरण, चौपालों तथा ग्रामसभाओं में परामर्श, समाज कल्याण विभाग से कलापथक कलाकार, स्वयंसेवी कार्यकर्ता आदि)
- वैज्ञानिक ट्रिक्स का प्रशिक्षण, प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं ग्रामों में प्रायोगिक प्रदर्शन, कला जत्थों का आयोजन, बौद्धिक सभाओं का चरणबद्ध आयोजन, स्थानीय भाषा में कानूनी प्रावधानों का पोस्टर एवं पांप्लेट निर्माण कर ग्रामों के चौपालों में चस्पाकरण ।
- सभी प्रकार की मीडिया (आकाशवाणी, टीव्ही चैनलों, प्रिंट मीडिया, प्रबुद्ध साहित्यकारों, नृत्य मंडलियों, रामायण मंडलियों, धार्मिक संस्थाओं के प्रमुख आदि) का व्यापक समर्थन प्राप्त करना।
- टोनही एवं ऐसे अंधश्रद्धा केंद्रित कुरीतियों को रोकने में सर्वोत्कृष्ट एवं कारगर भूमिका निभाने वाले पुलिस कर्मी, स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं, अधिकारियों का चिन्हांकन 26 जनवरी, 15 अगस्त आदि महत्वपूर्ण अवसरों पर सार्वजनिक सम्मान एवं पुरस्कार।
- टोनही, टोना, जादूगरनी आदि के कथित आरोप से पीड़ित परिवार, महिला-पुरुष का गोपनीय सूचना एकत्र करना, उन्हें घटना पूर्व पूर्ण कानूनी सहयोग एवं उनके सामाजिक बचाव के लिए सभी उपायों का सतर्क अनुप्रयोग
- अंधश्रद्धा फैलाकर समाज में अवैज्ञानिक, अमानवीय, असामाजिक वातावरण बनाने वाले तथा द्रव्य एवं रूपये कमाने वाले धूर्त बैगा, गुनिया, टोनहा की गोपनीय सूची तैयार करना । उन्हें टास्क फोर्स की निचली इकाइयों के द्वारा समझाइस देना । ऐसे ग्रामों में ( खासकर हाट बाजार के दिन भी )वैज्ञानिक ट्रिक्स से प्रशिक्षित टीम द्वारा प्रदर्शनों का आयोजन सुनिश्चित करवाना ।
- इसके अलावा जिला टास्क फोर्स अपने स्तर पर आपसी विचार-विमर्श से अन्य कार्यों, रणनीतियों का निर्धारण कर सकेगा ।
वैज्ञानिक चेतना के प्रसार हेतु स्वयंसेवी युवकों का चयन एवं प्रशिक्षण –वैज्ञानिक चेतना के प्रसार, टोनही एवं अन्य अंधविश्वासों की वास्तविकता से परिचित कराने, उसके आधार पर टोने-टोटकों के छद्मों का पर्दाफाश करने हेतु प्रत्येक स्तर पर प्रशिक्षित स्वयंसेवी युवकों की एक टीम होगी । यह त्रिस्तरीय टीम राज्य, जिला फोर्स, अनुविभाग/थाना स्तरीय टास्क फोर्स के संयोजन में कार्य करेगी । विशेष तौर पर यह टीमें पुलिस टास्क फ़ोर्स के मार्गनिर्देशन में गाँवों में वैज्ञानिक चेतना हेतु प्रायोगिक प्रदर्शन करेंगी। इन स्वयंसेवियों को कई दशकों से कार्यरत नागपुर की स्वयंसेवी संस्था अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निवारण समिति द्वारा प्रशिक्षित किया जा सकेगा । इन्हें प्रशिक्षित कराने का उत्तरदायित्व एवं आवश्यक संसाधन पुलिस राज्य/जिला/अनुविभागीय पुलिस टास्क फोर्स मुहैया करायेगी ।
राज्य स्तर पर –राज्य स्तर पर 25 मुख्य स्त्रोत प्रशिक्षकों होंगे । ऐसे मुख्य स्त्रोत प्रशिक्षकों का चयन पुलिस महानिदेशक द्वारा राज्य पुलिस टास्क फोर्स के संयोजन में किया जायेगा । ये सभी ऐसे युवा चिकित्सक, स्वयंसेवी संगठनों के युवा कार्यकर्ता, पुलिस विभाग के योग्य अधिकारी, विज्ञान प्रचारक, पत्रकार आदि हो सकते हैं, जिन्हें स्वयंसेवी आधार पर यह प्रशिक्षण दिया जा सकेगा तथा ये आवश्यकतानुसार अन्य स्तर पर आवासीय प्रशिक्षण का आयोजन एवं अंधविश्वास के निवारण की मानिटरिंग आदि कार्यों में स्वतः स्फूर्त होकर अपना योगदान दे सकेंगे ।
जिला स्तर पर-
जिला स्तर पर 10-10 मास्टर पर्सन्स होंगे । ऐसे मास्टर ट्रेनर्स का चयन जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा जिला पुलिस टास्क फोर्स के संयोजन में किया जायेगा । ऐसे मास्टर्स ट्रेनर्स का चयन स्वयंसेवी आधार पर कार्य करने वाले सामाजिक संस्थाओं के समर्पित युवा कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं इच्छुक पुलिस कर्मियों में से ही किया जा सकेगा । इन्हें राज्य स्तर पर आयोजित 2-2 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रशिक्षित किया जायेगा । इस तरह से कुल 190 मास्टर ट्रेनर्स जिलों के लिए तैयार होंगे । जो ग्राम्य स्तर पर चयनित 1-1 युवाओं को जिला स्तर पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रशिक्षित करेंगे एवं उनके साथ मिलकर जिलों के सभी गाँवों में टोनही सहित अन्य प्रचलित अंधविश्वासों के निर्मूलन में पुलिस की मदद करेंगे ।
अनुविभागीय स्तर पर-
प्रत्येक अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस अपने अधीन थानों के अंतर्गत अनुविभाग स्तर पर भी 10-0 ट्रेनरों का चयन करेंगे जिन्हें राज्य स्तर पर प्रशिक्षित एवं जिला स्तर के मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षित करेंगे । ऐसे अनुविभाग स्तरीय ट्रेनर्स का चयन अनुविभागीय पुलिस टास्क फोर्स के संयोजन में स्वयंसेवी आधार पर कार्य करने वाले सामाजिक संस्थाओं के समर्पित युवा कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं इच्छुक पुलिस कर्मियों में से ही किया जा सकेगा । अनुविभाग स्तर के ऐसे ट्रेनर्स जिला स्तरीय ट्रेनर्स के साथ अनुविभाग के अंतर्गत आने वाले थानों के अधीन प्रत्येक ग्रामों से 1-1 स्वयंसेवी, वैज्ञानिक चेतना पर विश्वास करने वाले शिक्षित युवाओं को उन आवासीय प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रशिक्षित करने में मदद करेंगे, जो थाना स्तर पर होगा ।
थाना स्तर पर –
प्रत्येक ग्राम से 1-1 स्वयंसेवी कार्यकर्ता होंगे । ऐसे प्रत्येक स्वयंसेवी कार्यकर्ता का चयन अंतिम रूप से थानेदार थाना स्तरीय टास्क फोर्स के संयोजन से कर सकेंगे । ग्राम वार नामों का लिखित प्रस्ताव कोटवार एवं प्रधान अध्यापक प्राथमिक शाला या माध्यमिक शाला देंगे । ऐसे स्वयंसेवी कार्यकर्ता का चयन करते वक्त कोटवार एवं प्रधान अध्यापक सुनिश्चित करेंगे कि वह न्यूनतम (आदिवासी क्षेत्रों में) आठवीं उत्तीर्ण हो, या अधिकतम मेट्रिक उत्तीर्ण हो । उसे सामाजिक कायों पर निःस्वार्थ और बिना पारिश्रमिक के अपने गाँव के सामाजिक उत्थान के लिए विश्वास हो । उसे विज्ञान पर विश्वास हो और वह टोनही आदि अंधविश्वास के ख़िलाफ़ कार्य करने की रूचि रखता हो । चूंकि अनुविभागीय स्तर पर ग्रामों की संख्या अधिक होगी अतः यह प्रशिक्षण थाना स्तर या विकास खंड स्तर पर होगा ।
इस तरह से राज्य के प्रत्येक ग्राम के लिए एक स्वयंसेवी युवा को प्रशिक्षित किया जायेगा जो अपने स्तर पर अंधविश्वास के निवारण के लिए न केवल वैज्ञानिक चेतना का संचार करेंगे बल्कि ग्राम स्तर पर ऐसे तत्वों को समझाइस भी देने में सक्षम हो सकेंगे। ऐसे स्वयंसेवियों से अपेक्षा भी रहेगी कि वे ऐसी संभावित घटनाओं की पूर्व सूचना भी सीधे थानेदार को दे सकेंगे । इनके चिन्हांकन के लिए थानेदार/पुलिस उप अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रशिक्षणोपरांत संतुष्ट होने पर परिचय पत्र भी दिया जा सकेगा ।
पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली के दृष्टिकोण से भविष्य में ऐसे युवकों को (उनकी सामाजिक भूमिका के स्तर पर योग्यता और प्रदर्शन पर विचार करते हुए) अन्य राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक महत्व के विषयों पर भी संसूचना हेतु उपयोग मे लाया जा सकता है, ताकि ऐसी आसन्न समस्याओं का पूर्व आंकलन किया जा सके जो पुलिस विभाग के लिए ज़रूरी हों । जैसे नक्सली समस्या, जुआ, जाली नोट का प्रचलन, शराब एवं मादक द्रव्यों का अवैध व्यापार आदि ।
अभियान के अंतर्गत वर्ष भर जिलों में विभिन्न गतिविधियाँ01. पुलिस विभाग के फील्ड अधिकारियों, थानेदारों का उन्मुखीकरण ।
02. यथासंभव सभी ग्रामों में एक बार वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रदर्शन, बौद्धिक सभा का आयोजन ।
03. कोटवार द्वारा प्रत्येक माह गाँव भर में टोनही निरोधक कानून आदि की मुनादी करना ।
04. कोटवार द्वारा कथित टोनही और बैगा आदि की गोपनीय सूची थानों को सौपना ।
05. प्रत्येक ग्रामों में पोस्टर, पाम्पलेट का वितरण एवं चौपालों पर चस्पा करना ।
06. कला जत्था दल द्वारा प्रमुख ग्रामों में जन जागरण अभियान हेतु प्रस्तुति ।
07. थानेदार द्वारा पंचायत के सहयोग से घटना संभावित ग्रामों में समझाईस बैठकों का आयोजन ।
08. ग्राम पंचायतों द्वारा हर ग्राम में टोनही विरोधी बैठक एवं ग्राम सभाओं का आयोजन ।
09. माननीय मुख्यमंत्री द्वारा जिला, जनपद, ग्राम पंचायत प्रमुखों को अपील पत्र जारी करना ।
10। त्रिस्तरीय पंचायत के अध्यक्षों, विधायकों, धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों की ओर से अपील
11। मुख्य सचिव की बैठक में कलेक्टरों को ऐसे अभियान मे संपूर्ण सहयोग का दिशाबोध देना ।
12. स्कूलों द्वारा टोनही एवं अंधविश्वास विरोधी रैलियों, प्रभात फेरियों, प्रतियोगिताओं का आयोजन ।
13. प्रत्येक जिले में एनसीसी/एनएसएस द्वारा ग्रामों में शिविरों का आयोजन ।
14. कृषि विभाग किसान मेलों में व सभा आयोजित कर टोनही विरोधी कानून की जानकारी देना ।
15. नेहरू युवा केंद्र को अभियान के लिए प्रेरित करना एवं उन्हें टास्क सौपना ।
16. आँगन बाड़ी केंद्रों में महिलाओं को ऐसी कुरीतियों के विरूद्ध सशक्त करने की वार्षिक रणनीति तैयार कर कार्य करना ।
17. मीडिया के सभी माध्यमों को उत्प्रेरित कर दोहन ।
18. टोनही आदि अंधविश्वासों के कारण होने वाले अपराधों के दर को शून्य पर लाना ।
19. उच्च प्रदर्शन करने वाले स्वयंसेवी अधिकारियों, कार्यकर्तोओं का सम्मान ।
अभियान हेतु निर्धारित समय-सारिणी
01. राज्य टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 28 फरवरी, 2009
02. जिला टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 5 फरवरी, 2009
03. अनुविभागीय टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 10 फरवरी, 2009
04. थाना टास्क फ़ोर्स का गठन, बैठक, कार्ययोजना निर्धारण- 10 फरवरी, 2009
05. ग्राम स्तर पर स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं का चयन – 28 फरवरी, 2009
06. राज्य स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला – 1-2 मार्च, 2009
07. जिला स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला – 10-12 मार्च, 2009
08. अनु. स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला– 20-21 मार्च, 2009
09. थाना स्तर पर वैज्ञानिक ट्रिक्स प्रशिक्षण कार्यशाला– 25-26 मार्च, 2009
10. राज्य में अंधविश्वास निवारण अभियान का शुभांरभ – 1 अप्रैल, 2009
11. अभियान के अंतर्गत विभिन्न गतिविधियों का संचालन – 31 मार्च, 2010 तक
(टीपः- आवश्यकतानुसार अभियान की अविधि बढ़ायी जा सकेगी)
http://cgpolice.blogspot.in
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धामीझाँक्री र झारफुक : उपचार कि अन्धविश्वास
काठमाडौं - आफूलाई प्रकृतिका पुजारी भनेर दाबी गर्ने धामीझाँक्रीका कारण मृत्युको मुखमा पुगेका घटना पनि देखिएका छन् भने कतिपय मानिस तिनीहरूको उपचार पद्धतिबाट निको पनि भएका छन् ।
–सिन्धुलीका ४२ वर्षीय रमेश पोखरेल कपनमा बस्छन् । ७ वर्षदेखि ढाड दुख्ने समस्याबाट पीडित रमेशले राजधानीका सबैजसो अस्पतालमा उपचार गराइसके । तर, रोग निको नभएपछि उनी पुल्चोकस्थित कान्छालाल लामाको बनझाँक्री क्लिनिकमा पुगे । लामाले झारफुक गर्दै तातो पन्यूँले डामे । कतै निको नभएको उनको समस्या तातो पन्यूँका कारण निको भयो । झाँक्री लामाका अनुसार मन्त्रका कारण तातो पन्यूँले डाम्दा पनि बिरामीलाई पोल्ने, दुख्ने तथा घाउ हुने समस्या हुँदैन । लामाको बनझाँक्री क्लिनिकमा दैनिक २०÷२५ बिरामी विभिन्न समस्या लिएर जाने गरेका छन् । मानसिक सन्तुलन गुमेकादेखि दीर्घरोगीसम्म उनीकहाँ उपचारका लागि पुग्छन् ।
–परीक्षामा कम नम्बर आएको चिन्ताले बिरामी भएकी समीक्षा कोइराला (नाम परिवतर्न)लाई पुल्चोकस्थित निदान अस्पतालमा भर्ना गरियो । एक सय पाँच डिग्री ज्वरो आएकी उनलाई चिकित्सकको औषधिले छोएन । एक सातासम्म पनि ज्वरो नघटेपछि आमाबुबाले घट्टेकुलोस्थित झारफुक केन्द्रका प्रमुख जनार्दन पराजुलीलाई अस्पतालमै बोलाए । पराजुलीले अस्पतालको वार्डमै धुपबत्ति बालेर झारफुक गरे । पराजुलीले ‘ग्रहले दुःख दिएको रहेछ मैले फुकेर सबै ठिक पारिदिएको छु’ भने ।’ त्यसको २४ घण्टा बित्न नपाउँदै कोइरालाको ज्वरो घट्यो । पराजुलीले मानसिक चिन्ताका कारण उब्जिएको समस्यालाई आत्मबल बढाएर निको पारेको दाबी गर्छन् । त्यसयता कोइरालाका परिवारमा जो बिरामी परे पनि पराजुलीकहाँ झारफुकका लागि पुग्छन् । उनी कोइराला परिवारको ‘फेमिली डाक्टर’ जस्तै बनेका छन् । कोइरालाले पठाएमात्र उनीहरू अस्पताल जान्छन् ।
पोखरेल र कोइराला शिक्षित वर्गका उदाहरण मात्र हुन् । स्वास्थ्यचौकीसम्म पहुँच नभएका गाउँबस्तीमा मात्रै होइन राजधानीका थुप्रै गल्ली तथा टोलमा धामी–झाँक्री, झारफुक तथा ‘माता’को उपचारसेवामा उस्तै भीड देखिन्छ । नामी चिकित्सकको क्लिनिकमा भन्दा धेरै मानिस अहिले त्यस्ता ठाउँमा भेटिन्छन् । चोक–चोकमा खुलेका अस्पतालबाट र चिकित्सकको सेवाबाट सन्तुष्ट हुन नसकी धाँमीझाक्रीको शरणमा पुग्नेहरू सन्तुष्टिको सास पनि फेरिरहेका पाइन्छन् ।
आधुनिक उपचारको विकासक्रम संगै शहरका गल्ली हुन् वा गाउँका बस्तीमा, उपचारको खोजीमा लामो समयसम्म भौतारिएकालाई शान्ति र सन्तुष्टि प्रदानगर्ने धाँमीझाक्री र झारफुक विद्याको रहस्याबारे अनुसन्धानसमेत भइरहेका छन् । कतिपय धाँमीझाक्रीले नै ठुला अनुसन्धान र विदेशीलाई तालिमसमेत दिईरहेका छन् । ती अध्ययनहरूले धाँमी विद्याको पछाडि मनोवैज्ञानिक उपचार एवम् हर्बल मेडिसिनको प्रयोगले बिरामी निको हुने गरेको पुष्टि गरेका छन् । यसले गर्दा यस क्षेत्रका अभ्यासकर्ताको विश्वास पनि निकै बलियो बनाएको छ ।
चिकित्सा मानवशास्त्र (मेडिकल एन्थ्रोपोलोजी) का प्राध्यापक डा. ऋतुप्रसाद गर्तौलाका अनुसार झारफुकलाई नेपाली सँस्कृतिले अनुमोदन र समाजले स्वीकार गरिसकेको छ । जसले गर्दा नै शिक्षित समुदायको बाहुल्यता रहेको राजधानीमा पनि धामीझाँक्री तथा माताको सेवा लिनेको संख्या बढिरहेको छ । यस्तो उपचारमा जडिबुटीको प्रयोग र बिरामीको आत्मविश्वास पनि बढ्ने भएकाले धेरै रोगको निदान हुने गरेको डा. गर्तौलाले बताए । विज्ञान पनि ८० प्रतिशत रोग आत्मविश्वासका कारण निको हुने बताउँछ ।
काठमाडौँ उपत्यकाको गौशाला, कोटेश्वर, सातदोबाटो, बानेश्वर, बौद्ध, कालधारा, विजेश्वरी, ललितपुर गावहाल, पुल्चोकलगायत मठमन्दिरका आसपासमा धाँमीझाक्री केन्द्र असंख्य रहेका छन् । कतिपय झारफुक गर्नेहरूले त महंगो कोठा भाडा तिरेर व्यवसाय चलाएका छन् । सामान्यतया झारफुक गरेर उपचार सेवा दिने पुरुषलाई धाँमीझाक्री तथा महिलालाई माताको उपमाले चिनिन्छन् । विभिन्न जात तथा धर्मअनुसार यस्ता सेवा दिनेलाई आ–आफ्नै नाम समेत दिइएका छन् ।
धामीझाँक्रीलाई लिम्बुहरूले फेदङवा, राईहरूले विजुवा, थारुले गुरुबा, नेवारले गुभाजु र तामाङहरूले लामा भन्छन् । यसैगरी फुकफाक गर्नेलाई झारफुके भनिन्छ । संस्कृत पढेकालाई पण्डित भनिन्छ । उनीहरूले ग्रहदशा हेर्ने गर्छन् । यस्तै ज्योतिषले पनि ग्रहदशा हेर्ने, चिना बनाउने जस्ता काम गर्छन् । वैद्यले आयुर्वेदिक औषधि चलाउँछन् ।
यस्ता केन्द्रमा लामो समयसम्म अस्पतालमा उपचार गराँउदासमेत निको नभएर, आधुनिक उपचार महँगो भएर वा त्यसमा विश्वास नलागेर आउनेको संख्या बढी रहेको पाइन्छ । शहरमा रहेका सबैजसो झारफुक केन्द्रमा जण्डिस, पक्षघात, ग्यास्ट्राइटिस, महीनावारी अनियमितता, मानसिक असन्तुलन, टाउको, कम्मर, घुँडा दुखाइ, बालरोग, दीर्घरोग, क्यान्सर, मिर्गौला फेलभएका सम्म जाने गरेका छन् । पारिवारिक मनमुटाव बढेका र पारपाचुके (डिभोर्स)को अवस्थासम्म पुगेका जोडीपनि समस्या समाधानको खोजी गर्दै त्यस्ता ठाउँ पुगिरहेका भेटिन्छन् ।
झारफुक गर्ने अधिकांशले बिरामी निको पार्ने ‘ग्यारेन्टी’ लिएका पाइन्छन् । ‘केन्द्रमा उपचारका लागि आउने अधिकांशलाई झारफुकपछि ग्यारेन्टिका साथ निको बनाएर पठाउँछौँ,’ अनामनगरको झारफुक केन्द्रका जनार्दन पराजुलीले भने, ‘हाम्रो उपचार भनेको जडीबुटी र मनोवैज्ञानिक नै हो ।’ चिकित्सकहरूले नै झारफुकका लागि बिरामी रेफर गर्ने गरेको उनको दाबी छ । झारफुकका लागि उनी नर्भिक अस्पताल र शिक्षण अस्पतालको आकस्मिक कक्षसम्म पनि पुगेको उनी बताउँछन् ।
अस्पतालमा निको नभएर हैरान भएका बिरामी पनि झारफुकपश्चात् पुर्ण सन्तुष्ट पाएका उदाहरण थुप्रै छन् । तीन वर्षदेखिको टाउको दुख्ने रोगको आधुनिक उपचारले ठीक नभएपछि ललितपुर पुल्चोकस्थित ललितराज बज्राचार्यको झारफुक केन्द्रमा पुगेका नुवाकोटका सुशील शर्मा झारफुकले निको भएको अनुभव सुनाउँछन् । ‘पहिला त मलाई पनि यस्तो झारफुकमा विश्वास लाग्दैन थियो,’ शर्माले भने, ‘तर अस्पतालका डाक्टरले तीन वर्षसम्म निको पार्न नसकेको समस्या तीन पटक फुकेको भरमा चट भयो ।’ बज्राचार्यको झारफुक केन्द्रमा शनिवार र मंगलबार १५० जनासम्म उपचारका लागि जाने गरेका छन् । उनीसंग झारफुक गर्न घण्टौं लाइनमा उभिनु पर्छ । बज्राचार्यका अनुसार उनका बाबु मुक्तराज पनि नाम चलेका धामी थिए । ‘सानै उमेरदेखि यो पेशामा लागेको हुँ,’ उनको दाबी छ, ‘म कहाँ आएका सबैजसोलाई निको पारेर पठाएको छु ।’ उनका अनुसार बेहोस भएर आएका धेरै बिरामीलाई समेत उनले फुकेको भरमा हिँड्ने बनाएर पठाएका छन् ।
गावहालमै ललितराजका भाइ तर्कराज र उनका भतिज पन्नाराजले पनि झारफुकबाटै उपचार सेवा प्रदान गरिरहेका छन् । झारफुक उनीहरूको पुस्तौनी पेशा बनेको छ । उनीहरूले बिरामीलाई रोग अनुसारको आर्युवेदिक औषधिसमेत दिने गरेका छन् । कतिपय लामो अनुभव र विश्वास कमाइसकेका धामीझाँक्री तथा गुरुहरूले आफूले नसक्ने लागेमा चिकित्सकलाई समेत रेफर गर्ने गरेका छन् । बिरामीले चिकित्सकीय उपचारको साथमा झारफुक पनि जारी राखेका उदाहरण पनि उत्तिकै छ ।
जति विश्वास, उति विकृति
धाँमीझाक्रीले बनाएको विश्वासको महल जति ठूलो छ, यस क्षेत्रमा विकृतिको पहाड पनि उस्तै छ । केही धामीझाँक्रीले आफ्नो पेशाको दुरुपयोग गर्दै पैसा कमाउने र बिरामी ठग्ने माध्यम बनाएका छन् । बिरामीलाई यातना दिने र बलात्कारसम्मका घटनापनि छन् । यस्ता धामीझाँक्रीबाट उपचारका क्रममा धेरैको ज्यानसमेत गएको छ । आफूले चार वर्षको हुँदादेखि नै धामीझाँक्री मन्त्र सिकेको दाबी गर्ने ८६ वर्षीय मोहन राई यो पेशामा विकृति भित्रिएको स्वीकार गर्छन् । उनले नेपालमा ७ लाखभन्दा बढी धामीझाँक्री रहेपनि केही सयमात्र खास धामीझाँक्री भएको बताउछन् । नक्कली धामीझाँक्रीका कारण पेशा नै बदनाम भएको उनको भनाइ छ ।
— गत वर्ष महोत्तरीको हात्तीलेटमा धामीझाँक्रीको उपचारका क्रममा रामनगर ९ का १२ वर्र्षीय मदन मसाङगीको ज्यान गएको थियो । उनलाई टाउको दुख्ने, बान्ता हुनेजस्ता समस्या देखिएकाले त्यहाँ पुयाइएको थियो । करिब आधा दर्जन धामीझाँक्रीले उपचार गर्न नसकेपछि अस्पताल लैजान खोज्दा धामीले रोकेपछि मदनको मृत्यु भएको उनका आमाको भनाइ छ । आफूलाई पशुपतिबाबा बताउने धामीले अस्पताल लैजान नपर्ने भनेपछि धामीले स्थापना गरेको पूजा कोठामै बालकको ज्यान गएको थियो ।
— गत वर्ष असारमै धनुषाको रमदैया गाविसस्थित राजदेवी मन्दिरका पुजारीले झारफुक गर्ने बहानामा बालिकालाई बलात्कार गरेको रहस्य खुल्यो । मन्दिरका पुजारी ४५ बर्षीया ा रामपुकार यादवले १३ बर्षकी ती बालिकालाई झारफुकका क्रममा बलात्कार गरेका थिए । पेट दुखेपछि झारफुकका लागि पुजारीकहाँ उनकी आमाले पु¥याएको र पुजारीले आमालाई झारफुकका लागि सामान किन्न पठाएर बालिकालाई बलात्कार गरेको प्रहरीले जनाएको छ ।
— गत वर्ष झापामा झारफुक गराउने क्रममा जिउमा तातो पानी खन्याउँदा एक महिलाको ज्यान गयो । बेला–बेलामा बेहोस हुने समस्या रहेकी २८ वर्षीया सुन्तली खड्कालाई स्थानीय धामी हिरालाल राईले बेहोस अवस्थामा जिउमा पटक–पटक उमालेको पानी खन्याएका थिए । मन्त्र पढ्दै तातो पानी खन्याएपछि महिलाको जिउमा ठुला ठुला फोका आएको थियो । धामीले केही बेरमा निको हुन्छ भने पनि महिलाको अवस्था झन् नाजुक बन्दै गएपछि परिवारले तुरुन्तै अस्पताल लगेका थिए । तर उनको अस्पतालमै मृत्यु भयो ।
नेपालमा दैनिकजसो झारफुकका क्रममा महिला बलात्कृत तथा दुव्र्यवहारको सिकार भएका घटना बाहिर आउने गरेका छन् । धामीझाँक्री अध्ययन तथा अनुसन्धान केन्द्रका प्रमुख राईका अनुसार नेपालमा सक्कलीभन्दा नक्कली धामीको संख्या बढिरहेकाले यस्ता घटना बढेका हुन् । उनी भन्छन् ‘नेपालमा नक्कली धामी धेरै छन् ।’ त्यस्तालाई मन्त्र तथा जडिबुटीका बारेमा समेत ज्ञान नहुने उनको भनाइ छ । उनी धामीको नाममा बदनामी फैलाउनेलाई सरकारले कडा कारवाही गर्नुपर्ने बताउछन् ।
वैज्ञानिक प्रमाण होइन, विश्वासमात्र
धामीझाँक्रीले जति प्रकारका विद्या, मन्त्र र उपचार विधिको तर्क गरेपनि ती तर्कका पछाडि बिरामीको विश्वास र उनीहरूको अनुभवबाहेक वैज्ञानिक प्रमाण र कुनै तथ्य छैनन् । न विज्ञानले नै यसको अनुसन्धानमा चासो दिएको छ । विज्ञका अनुसार परम्परागत नेपाली समाजमा धामी–झाँक्री प्रथा उपचारले भन्दा पनि विश्वासले टिकेको हो । अदृश्य शक्तिसँग खेल्न सक्ने दाबी गर्ने धामीझाँक्रीले आफूमा देवता प्रवेश गरेको भान पार्दै बिरामीको विश्वास जितिरहेको चिकित्सकहरू बताउँछन् । चिकित्सक र बिरामीबीच घट्दै गएको सञ्चारले पनि बिरामीको आकर्षण त्यसतर्फ बढेको हो । सामान्य काउन्सिलिङले निको हुने बिरामीलाई पनि डाक्टरहरूले पर्याप्त समय दिन नसक्नु पनि धामीझाँक्रीतर्फ विश्वास बढ्नु पनि अर्को कारण रहेको छ ।
चिकित्सकहरू विज्ञानमा विश्वास गर्छन् तर धामीझाँक्री प्रकृतिको खेलमा । त्यसैले धामीझाँक्रीले आफ्नो विश्वास कायम राख्न कतिपय अपत्यारिला र रहस्यमय गतिविधि गरेर देखाउँछन् । थरीथरीका मन्त्रोच्चारण गर्दै र अक्षता छर्कदै काम्ने, अनौठा शब्दहरू बोल्ने र झारफुक गर्ने तिनै धामीझाँक्री आयुर्वेदिक औषधि पनि चलाउँछन् । बिरामीको मनमा विश्वासको जति ठूलो जग बसाएपनि यसकोे अनुगमन भने नितान्त आवश्यक भएको अनुभव गर्न कठिन छैन । उपचारबाट निको भए्को महसुसकै भरमा यो क्षेत्रलाई अनियन्त्रित रूपमा छोड्न नहुने स्वास्थ्य मन्त्रालय चिकित्सा सेवा महाशाखा प्रमुख डा.गुणराज लोहनीको भनाई छ ।
जनस्वास्थ्यविद् डा.बद्रीराज पाण्डे धाँमीझाक्रीप्रति रहेको सर्वसाधारणको विश्वासबाट स्वास्थ्य क्षेत्रले फाइदा उठाउँनुपर्ने बताउँछन् । सन् १९६० को दशकमा दोलखामा धामीझाँक्रीलाई तालिम लिएर उनीहरू मार्फत् नै परिवार नियोजनका साधन प्रबद्र्धन गराएका पाण्डेले अझै त्यो सम्भावना कायम रहेको बताए । ‘धामीलाई तालिम दिएर उनीहरूमार्फत् निको हुन सक्ने मनोसमस्या निको गराउँने र नहुने समस्याका लागि डाक्टरसम्म रेफर गर्ने ‘टुल्स’ विकास गर्न सकिन्छ,’ पाण्डेले भने, ‘धामीझाँक्रीको माइन्डसेट चेन्ज गर्दै उनीहरूमार्फत् नै आमपब्लिकको फुकफाकप्रतिको निर्भरता घटाउन सकिन्छ,’ । प्रहरी प्रशासन लगाएर मात्रै यो नियन्त्रण हुन नसक्ने डा. पाण्डेको भनाई छ ।
स्वास्थ्य मन्त्रालयका डा.लोहनी अध्ययन र अनुसन्धान नभएकाले यसमा अनुगमन एवम् मुलप्रवाहिकरण गर्न नसकिने बताउँछन् । ‘स्वास्थ्य क्षेत्रमा वैकल्पिक उपचार पद्धतिअन्तर्गत झारफुक पर्छ,’ डा.लोहनीले भने, ‘तालिम दिएर स्वास्थ्य सेवासम्म रेफरको लागि सहयोग लिन सक्छौं, तर अप्रमाणित कुरालाई मुलधारमा ल्याउन सकिन्न ।’
के हो धामीझाँक्री प्रथा ?
धामीझाँक्री प्रथा दास युगबाट सुरु भएको मानिन्छ । जंगली युगमा प्रकतिले नै रोगव्याधि नियन्त्रण गरेको मान्यता छ । त्यसपछि दासयुगमा जादुवालाले टुनामुना, पुजारी र धामीझाँक्रीले झारफुकबाट उपचार गर्ने गरेको इतिहासमा पाउन सकिन्छ । दास युगपछि मात्र उपचारमा जडिबुटि प्रयोग हुन थालेको हो । तर, यस्ता उपचार पद्धति आजसम्म पनि समाजमा प्रचलित छन् । तान्त्रिक तथा झारफुक निकै वृहत विषय मानिन्छ । यसभित्र १३ वटा विधा पर्छन् । जसमा सबैभन्दा ठुलो ओझा हो । ओझाहरू झारफुक विशेषज्ञ मानिन्छन् । यिनीहरूले अरूबाट रेफर भएर आएका जटिल समस्या मात्र हेर्छन् । त्यसपछि धामीझाँक्री पर्छन् । धामी र झाक्री पनि फरक–फरक छन् । धामीले बलि दिँदैनन् । उनीहरूले कुलको पुजा गरेर उपचार गर्छन् । झाँक्रीले भने पशुपंक्षीकोे बलि दिएर उपचार गर्छन् । धामीझाँक्री आफूलाई भगवान शिवको चेलाको रूपमा दाबी गर्छन् । धामीझाँक्रीले बजाउने ढोल शिवजीलाई बोलाएको भन्ने मान्यता छ । त्यसैगरी उनीहरूले ढ्यांग्रो बजाए मसान र भुत आउछन् भन्ने मान्यता राख्छन् । धामीझाँक्रीले भगवान, मसान र भुतबाट मानिसको रोगको जानकारी लिएर उपचार गर्ने दाबी गर्छन् । तर यस्ता कुरालाई विज्ञानले विश्वास गरेको छैन । (चिकित्सा मानवशास्त्री डा. ऋतुप्रसाद गर्तौलासंग गरेको कुराकानीमा आधारित)
धामीझाँक्री अनुसन्धान केन्द्र सञ्चालन
स्वास्थ्य तथा जनसंख्या मन्त्रालयले धामीझाँक्रीलाई मुलप्रवाहमा नल्याए पनि राजधानीको नैकापमा २६ वर्ष देखि धामीझाँक्री अध्ययन तथा अनुसन्धान केन्द्र सञ्चालनमा रहेको छ । नेपाली कानुन अनुसार दर्ता भएर नै सञ्चालनमा रहेको उक्त केन्द्रको नाम ‘समानिष्टिक स्टडिज एन्ड रिसर्च सेन्टर’ हो । केन्द्रले आफ्नो स्थापनाकालदेखि नै विदेशीलाई धामीझाँक्री विद्या पढाउँदै आइरहेको छ । यसका साथै बिरामीको उपचार पनि गर्दै आइरहेको छ । केन्द्रका प्रमुख मोहनलाल राईका अनुसार संस्था चलेको २६ वर्ष भए पनि दर्ता भएर चल्न थालको भने २२ वर्ष पुरा भएको छ । २२ वर्ष अघि दर्ता गरिएको संस्थाले हजारौं बिरामीको उपचार गरिसकेको छ भने ३ हजारभन्दा बढी विदेशीलाई धामीझाँक्री विद्या सिकाइसकेको छ । सन् १९६२ मा भुटानबाट नेपाल आएका सेन्टरका प्रमुख राई नेपालमा मात्र नभई विदेशका विभिन्न देशमा गएर अध्यापनसमेत गर्छन । धेरै जसो उनी जर्मनका विश्वविद्यालयमा अध्यापनका लागि जाने गरेका छन् । केन्द्रमा झारफुकका लागि आवश्यक पर्ने ढ्ंयाग्रो तथा अन्य सामग्रीसमेत बनाइन्छ । विदेशीले ती सामग्री किनेर लैजाने गरेका छन् ।
मेडिकल साइन्सले विश्वास गर्दैन
डा. कपिलदेव उपाध्याय, मनोरोग विशेषज्ञ
नेपाली समाजमा झारफुकप्रति ठुलो विश्वास छ । हरेक परिवारमा भुतप्रेत, ‘लागुभागु’ ग्रहले बिरामी गराउँछ भन्ने विश्वास छ । यस्तो समस्याको उपचार भनेको नै झारफुक हो भन्ने संस्कृति बनेको छ । सयौँ वर्षदेखि धामीझाँक्रीकहाँ उपचार गराउने चलन चलिरहेको छ । एलोपेथिक उपचार निकै पछि आएको हो । त्योभन्दा अगाडि झारफुक र जडिबुटीबाट नै उपचार हुन्थ्यो ।
झारफुक उपचार भनेको धेरै हदसम्म मनोवैज्ञिानिक उपचार हो । माता चढ्ने, देवी चढेको, शरीरमा देवी प्रवेश गरेको, शिकारी लागेको जस्ता समस्याको उपचार भन्दै धामीझाँक्रीले बिरामीको उपचार गरेका हुन्छन् । मेडिकल साइन्सले झारफुकमा विश्वास गर्दैन । तर झारफुक गर्नेहरूको पनि मेडिकल साइन्सको जस्तै छुट्टै विद्या छ । उनीहरूले पनि परम्परागत रूपमा यस्तो विद्या हासिल गरेका हुन्छन् । उनीहरूको विद्यामा पनि उपचार पद्दतिका बारेमा धेरै कुरा हुन्छ । त्यही विद्याका आधारमा उनीहरूले उपचार गरिरहेका छन् । उनीहरूको विद्यामा के–के कुराहरू छन् भनेर मेडिकल साइन्सले भन्न सकिरहेको छैन ।
धामीझाक्रीको परम्परागत अध्ययनका आधारमा नै उनिहरूले विभिन्न रोगमा विभिन्न थरीका मन्त्र तथा जडिबुटीहरू दिएर उपचार गरीरहेका हुन्छन् । उनिहरूकोमा जाने बिरामी धेरैजसो मनोरोग लागेका हुन्छन् । हुन् त मानिसका धेरै रोगहरू मनोवैज्ञानिक हुन्छन् । रोग लागेका मानिसको आत्मबल बढाउन सक्यो भने पनि धेरै समस्या समाधान हुन्छ । झारफुकमा गएका बिरामीमा पनि मनोगत रूपमा मेरो रोग अब ठिक हुन्छ भन्ने आत्मबल बढ्ने हुन्छ र रोग निको भएको हुनसक्छ । झारफुक उपचार विधि मनोविज्ञानसहित विश्वासमा टिकेको उपचार पद्धति हो ।
समाजले अनुमति दिएको छ
डा. ऋतुराज गर्तौला, चिकित्सा मानवशास्त्री
झारफुक गर्ने वा धामीझाँक्रीको उपचारलाई नेपाली समाजले अनुमति दिएको छ भने संस्कृतिले पनि मान्यता दिएको छ । पहिलाको उपचार सेवा र अहिलेको उपचार सेवामा फरक छ । पहिला यो विधामा उपचार हुँदा फुकफाक मात्र हुन्थ्यो भने अहिले आयुर्वेदिक औषधि पनि प्रयोग भैरहेको छ । धामीझाँक्रीले गरेको अभ्यासको अध्ययन नै नगरी विरोध भएको छ । वास्तवमा उनीहरूले गरेका उपचारका धेरै तरिका आधुनिक उपचारसँग मेल खान्छन् । त्यसकारण यो उपचार पद्धतिको अध्ययन आवश्यक छ । ग्रामीण भेगमा प्राथमिक उपचार २४ सै घण्टा उपलब्ध गराउने भनेको नै तिनै धामीझाँक्री हुन् ।
उनीहरूलाई कुन समस्या भएमा कस्तो जडिबुटी दिनुपर्छ भन्ने पनि ज्ञान छ । त्यसकारण उनीहरू मानिसको आत्मविश्वास बढाएर शक्तिशाली बन्दै गएका छन् । नेपाली समाजमा भुतप्रेत, पिसात, मसान, शिकारीले मानिसलाई रोग लगाउँछ भन्ने विश्वास छ । तिनीहरूले मानिसलाई के रोग लगाउँछन् र के उपचार गर्ने भन्ने ज्ञान धामीझाँक्रीमा छ । त्यसकारण मानिसहरूले विश्वास गरिरहेको यो उपचार सेवालाई हेप्नु, गलहत्याउनु हुन्न । बरू उनीहरूलाई तालिम दिएर नीतिगत रूपमा आधुनिक उपचारसँग जोड्ने प्रयास गर्नुपर्छ ।
मनोवैज्ञानिक उपचार पनि हो
जनार्दन पराजुली, ज्योतिष पण्डित, घट्टेकुलो
मैले झारफुकबाट बिरामीको उपचार गर्न थालेको २५ वर्षभन्दा बढी भैसक्यो । संखुवासभामा छँदादेखि नै झारफुक गर्ने गर्थेँ । तर पेशाकै रूपमा यो काम थालेको भनेको १५ वर्ष भयो । अस्पतालमा उपचार गराउँदा निको नभएर भौतारीएका धेरैलाई ठिक पारेको छु । झारफुक भनेको मनोवैज्ञानिक उपचार हो । यसबीचमा मैले बच्चादेखि वृद्धसम्म सबैको उपचार गरेको छु । बाहिर जिल्लाबाट समेत खोज्दै मकहाँ उपचार गर्न आएका धेरै नै छन् ।
महिनावारी ठिक नभएका अविवाहित महिलालाई चिकित्सकले विवाहपछि ठिक हुन्छ भन्छन् । अनि विवाह भएको छ भने बच्चा भएपछि भन्छन् । तर त्यस्तो समस्या भएका महिलालाई जडिबुटी दिएर फुकेपछि तीन महिनामा ठिक पार्न सक्छु । अस्पतालमा धाउँदाधाउँदा वर्षौ ठिक नभएका त्यस्ता महिला मेरो उपचारपछि तीन महिनामा ठिक भएका धेरै छन् । बच्चालाई हरियो दिसा हुने समस्या छ भने एकपटक फुकेर मैले दिएको औषधि खाँदा पुर्ण रूपमा ठिक हुन्छ । काम्ने समस्या भनेको मनोवैज्ञानिक समस्या हो । तिनिहरूलाई त्यही रूपमा उपचार गर्छु ।
मलाई त डाक्टरहरूले नै बिरामी रिफर गर्छन् । अस्पतालका वार्डमा मा होइन आइसियुमा समेत गएर फुकेर उपचार गरेको छु । मैले अहिलेसम्म वीर, टिचिङ, पाटन, कान्ति, ओम, निदान तथा सहारा अस्पतालमा पुगेर झारफकुबाट उपचार गरेको छु । एकपटक एक डाक्टरले बच्चालाई केही समस्या छैन तर राती सँधै तर्सिन्छ भनेर पठाउनुभएको थियो । त्यो बच्चाको सातो गएको रहेछ । मैले मन्त्रेर सातो बोलाएपछि उसलाई पूर्ण रूपमा ठिक भयो । त्यसपछि ती डाक्टरले मलाई सँधै त्यस्ता बिरामी पठाउनुहुन्छ । आधुनिक उपचार जस्तै धामीले पनि नाडी छामेर पल्सका आधारमा उपचार गर्छन । अनि उनीहरूलाई समस्याका आधारमा जडीबुटी दिने गर्छौं । चामल मन्त्रने, गन्ने, जोखाना हेर्ने काम पनि गरिन्छ । तर त्यो भनेको मनोवैज्ञानिक उपचार हो ।
मोहनलाल राई, धामीझाँक्री गुरु
धेरै नेपालीलाई आधुनिक उपचारभन्दा पुरानै पद्धति ठिक छ भन्ने थाहा छ । त्यसकारण अहिले झारफुक केन्द्रमा उपचार गराउनेको संख्या बढिरहेको छ । आधुनिक औषधि खाँदा हैरान भएकाहरू अहिले पुन यो विधिमा आकर्षित भएका छन् । अहिले महंगी निकै बढेको छ । गरिब नेपालीले एक हप्ता अस्पताल बस्नुप¥यो भने घरखेत बेच्नु पर्छ । तर हामीकहाँ आए निःशुल्क पनि सेवा पाउँछन् । हातगोडा काटिएका तथा दुर्घटनाका उपचार हामीबाट हुँदैनन् । तर जिउ दुख्ने, टाउको दुख्ने, खाना खान मन नलाग्ने, रगत छाद्ने, हातखुट्टा कटकटी खाने, जिउ पोल्ने, जनै खटिरा, जण्डिस, महिनावारीको समस्या, खाना नपच्ने, कपाल दुख्ने, वाकवाकी लागिरहने, राती सुत्न नसक्ने, सोला हान्ने जस्ता धेरै रोग तथा समस्या हामीले निको पार्छौँ ।
मान्छेलाई विभिन्न किसिमका रोगहरू लाग्दछ । देउता रिसाएपछि नराम्रो हुन्छ । त्यही भएर हामीले पुजापाठ गरेर समस्यालाई समाधान गर्ने गर्छौ । देवीदेवता लागेकालाई हामी उपचार गर्छौ । डाक्टरहरूले त्यस्तो समस्या समाधान गर्न सक्दैनन् । हामी प्रकृतिका पुजारी हौँ । प्रकृतिको ज्ञान नभएको मानिस यस्तो विधामा लाग्न सक्दैन । प्राकृतिक शक्तिको सही रूपमा हामीले उपयोग गरेर उपचार गरिरहेका छौँ । प्रकृतिमै सबै रोगको औषधि छ ।
आएका बिरामीको हामी जोखाना हेर्छौ, पुजा गर्छौँ र उपचार सुरु गर्छौँ । मन्त्र पढ्ने, फुक्नेदेखि हामी जडिबुटीसमेत दिन्छौँ बिरामीलाई । धेरै जसो कुलदेवताले विगारेर समस्यामा परेकाहरू आउँछन् । त्यस्तो समस्या डाक्टरको कैँची, छुरी, सुई, धागोले काम गर्दैन । डाक्टरसमेत मेरोमा उपचार गर्न आउँछन् । हाम्रो उपचारमा नाडी छाम्ने र जोखाना हेर्न जान्नुपर्छ । जोखाना भनेको चिकित्सकको एक्स–रे, स्टेथेस्कोप जस्तै हो । मेरोमा विदेशबाट पनि धामीझाँक्री विद्या सिक्न आउँछन् । विदेशमा गएर मैले यो विद्या र उपचार सिकाइरहेको छु । अहिलेसम्म तीन हजार जति विदेशीलाई धामी झाँक्री सिकाइसकेको छु ।
निको हुन्छ भन्ने सुनेर आएको
बिरामी, देवबहादुर भुजेल
म यहाँ सिन्धुपाल्चोकबाट उपचारका लागि आएको हुँ । मेरो लडेर हात भाँचिएको थियो । हात त जोडियो तर दुख्ने समस्या कहिले पनि ठिक भएन । दुखाई ठिक पार्न धेरै अस्पताल धाएँ । तर पनि निको भएन । बरु उल्टै पेट फुल्ने समस्या देखियो । अस्पतालमा जाँदा पैसा मात्र सकियो, रोग ठिक भएन । यहाँ झारफुक गरेपछि सबै रोग निको हुन्छ भन्ने सुनेपछि आएको हुँ । हिजो पनि आएको थिएँ । गुरुले फुकेर उपचार गर्नु भयो । धुप खाएर उपचार भयो । पेट फुलेको हिजोभन्दा आज धेरै निको भएको छ । हात पनि दुख्न कम भएको जस्तो छ ।
मनी खड्की, रातोपुल
छोरालाई ज्वरो आउने र खाना नखाने समस्या भएपछि हामी रातोपुलबाट यहाँ पुल्चोकमा झारफुक गराउन आएका हौँ । हामीलाई झारफुकमा निकै विस्वास छ । यसअगाडि पनि धेरै रोग तथा समस्या उहाँले फुकेको भरमा नै निको पार्नु भएको छ । छोरालाई पहिला पनि बिरामी भएको बेलामा उहाँले नै उपचार गर्नु भएको हो । आँखा लाग्ने समस्या रहेछ त्यो फुकेपछि निको भयो । अरुले भेद्ने, बिगार गर्ने गर्दा छोरा बिरामी परेको हो । अहिले फुकेपछि सञ्चो भएको छ ।
म्यानफ्रेड ब्रोकर, ह्यामबर्ग, जर्मनी
म २००२ मा पहिलोपटक नेपाल आएको थिएँ । यहाँ जर्मनीको एउटा संस्थाले नेपालको विद्यालयमा सहयोग गरेको थियो । त्यसैको कार्यक्रममा आउँदा मैले धामीझाँक्री विद्याबारे जानकारी पाएँ । यसप्रतिको विश्वास अझ बढेर गयो, जब मैले एकजना व्यक्तिको कम सुन्न सक्ने क्षमता मेरो अगाडि नै ढ्यांग्रो बजाएर र मन्त्र उच्चारण गरेर ठिक पारे । त्यो व्यक्तिले श्रवण यन्त्र अहिलेसम्म प्रयोग गर्नुपरेको छैन र उनी सामान्य व्यक्तिसरह नै सुन्न सक्छन् ।
म पेशाले अर्थशास्त्री र मनोविद् हुँ । मैले यो विद्या सिक्न थालेको ४ वर्ष जति मात्र भयो । मलाई के विश्वास छ भने यो विद्याले मान्छेको शारीरिक वेभको सन्तुलन गर्न सहयोग गर्छ ।
जर्मनीमा पनि यो विद्यालाई मान्छेले स्विकार्दैनन् । यसको विषयमा कुरा ग¥योकि पागल भन्छन् । तर रमाइलो के छ भने, यदि यो विद्यामा सिक्ने कुरालाई मैले कुनै धर्मसँग जोडे भनेँ भनेचाँहि सबै नतमस्तक हुन्छन् । उदाहरणका लागि यस विद्या र शक्तिको कुरालाई मैले येशु धर्मसँग जोडेर भनेँ भने म सही ठहरिन्छु नत्र झुटो । अब प्रश्न आउँछ, यसलाई आधुनिक चिकित्सासँग कसरी जोडेर हेर्ने ? मेरो गुरुको हात भाँच्चियो भने उहाँ झारफुक गर्नुहुन्न, आधुनिक चिकित्साकै बाटोमा हिड्नु हुन्छ । तर उहाँको शारीरिक सन्तुलन कायम गर्न र अरुलाई सहयोग गर्न भने यही विद्याको प्रयोग गर्नुहुन्छ । यो विद्या भनेको प्रकृतिसँग र आफ्नो कुल देवतासँग सन्तुलन कायम गर्नु हो ।
यो विद्यामा पूर्ण विश्वास छ
एन्ड्रिया नेभिले, ओटावा, जर्मनी
म कल्चरल एन्थ्रोपोलोजी र धर्मशास्त्रको विद्यार्थी हुँ । मेरो थेसिस लेख्ने क्रममा म २ वर्ष अघि बौद्धनाथमा बसेको थिएँ । त्यहीँबाट मैले यस धामीझाँक्री विद्याबारे जानकारी पाएँ र यतातिर तानिए । म अहिले यसको विद्यार्थी हुँ र मलाई मेरो थेसिसमा पनि कसरी यो विद्यालाई आधुनिक चिकित्सासँग जोड्ने भन्ने मन छ । एकजना विज्ञले भनेका छन् कि पूर्वीय दर्शनमा व्यक्तिहरू आफ्नो सोचाई विभिन्न तहबाट गर्न सक्छन् (पोलिफेजिक) भने क्यानाडा र अन्य पश्चिमा व्यक्ति भने केवल एक तहमा मात्र सोच्न सक्छन् । यही विभिन्न तहबाट सोच्न सक्ने क्षमताको अध्ययन नै मेरो प्रमुख इच्छाको विषय हो । म अझै ३ महिना नेपालमा रहन्छु र दुई हप्ताको विषय अध्ययन गरिरहेको छु । म जुन समाजमा जन्मे हुर्केको छु, त्यसले यो विद्यालाई मान्यता दिँदैन । म अरूलाई यसको विषयमा धेरै वुझाउन पनि सक्दिन । तर मलाई यो विद्या र शास्त्रमा पूर्ण विश्वास छ ।
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वास्तुः न अविश्वास न अन्धविश्वास
शनिबार , २८ भदौ २०७१ ११:४६ एम
हिजोआज घडेरी किन्दा नक्शा अनुसारको जग्गा छ/छैन, क्षेत्रफल के कसो छ भनेर बुझन सर्भेयर (अमिन) बोलाउने होइन, त्यसको शुभ–अशुभ थाहा पाउन ‘वास्तुशास्त्री’ को पछाडि लाग्ने कामले प्राथमिकता पाएको छ। वर्षौंदेखि शान्त कतिपय घरभित्र ‘वास्तु बिग्रिएको अनर्थ’ पसेको छ।
आर्किटेक्ट अथवा सिभिल इन्जिनियरले मिहिनेतसाथ कोरेको नक्शा फेरि तन्त्रविद्कोमा पुग्न थालेको छ। यस्तो ‘आपत्मा’ विशेषगरी टीभी हेरेर आत्तिएकाहरू धेरै छन्।
रातो मसीले कोरिएर हेरिनसक्नु बनेको आफ्नो घरको नक्शा हातमा लिएका उनीहरू ‘लौ, इन्जिनियर भनाउँदोले त धन–विद्या नाश हुने, बाथ–क्यान्सर–चोर लाग्ने घर पो बनाइदिएछ’ भन्दै आत्तिएका हुन्छन्। यसरी शान्ति हराएको घर ‘भूतघर’ बन्न पुग्छ, जतिसुकै भव्य किन नहोस्!
वास्तुशास्त्रको पछिलागेर प्राविधिकलाई अन्धाधुन्द गाली मात्र होइन, वास्तुविद्यामाथि खनिनेहरू पनि कम छैनन्। उनीहरू वास्तुविद्यालाई फटाहाहरूको ठगी खाने भाँडो भन्छन्।
पश्चिमा विद्वान् र प्राविधिकको कुरो नमानेर हामी विकासमा पछिपरेको र रुढिवादमा फँसेर समाजलाई ध्वस्त पारेको उनीहरूको आरोप हुन्छ। भवनहरूको डिजाइनमा वैदिक वास्तुशास्त्रबारे अविश्वास राख्नेहरू बाक्लै भेटिन्छन्। यसैगरी, विश्वास मात्र होइन, अन्धविश्वासै राख्नेहरू पनि कम छैनन्।
खासमा, आयुर्वेद वा ज्योतिष विज्ञान जस्तै वास्तुशास्त्र पनि वैदिक विज्ञान हो, तर शुभ–अशुभ बाहेक अर्थोक नजान्ने र अपव्याख्यामा रमाउनेहरूका कारण समस्या भएको छ। आस्था–संस्कारलाई फित्ताले नापेर, मेशीनले जाँचेर ठीक―बेठीक भन्न मिल्दैन, हुँदैन।
धार्मिक आस्था समेत जोडिएको प्राचीन हिन्दू संस्कार र निर्माण सभ्यता हो– वास्तु। ‘वास्तु’ मिलेको मन्दिर र ‘आर्किटेक्चर’ मिलेको घर राम्रो हुन्छ।
वास्तुशास्त्र र वास्तुपुरुष
‘आर्किटेक्चर’ अहिलेको युग सुहाउँदो विज्ञान हो भने वास्तुतन्त्रले मठ–मन्दिरलाई थप पवित्र र सुन्दर बनाउने मानिन्छ। देउताको स्थान उनी अनुकूल हुनुपर्छ, घर मानिसका लागि बनाइने हुनाले मानिस अनुकूल नै हुनुपर्छ।
आर्किटेक्चर पढ्दाताकाका मेरा गुरु प्रा.डा. मोहनमूर्ति पन्त भन्नुहुन्थ्यो, “घर सबैखाले संस्कृति थन्क्याउने ठाउँ हो। घर निर्माणको संस्कृति मासिए मान्छेले आर्जन गरेका सबै संस्कृति मासिन्छन्।”
यजुर्वेदको स्थापत्य अध्यायको मूल वास्तु शिल्पशास्त्रको एक अंग हो– वैदिक वास्तुशास्त्र।
वास्तु शिल्पशास्त्रलाई देवशिल्प र मानवशिल्प गरी दुई भागमा बाँडिएको छ। देवशिल्पमा मठमन्दिर, यज्ञशाला आदिको निर्माणविधि सुझ्ाइएको छ भने मानवशिल्पमा आवासका विभिन्न कक्ष बनाउँदा ख्याल गर्नुपर्ने दिशा–कोणबारे विस्तारमा उल्लेख छ।
गरुडपुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण आदि धर्मग्रन्थमा पनि वास्तु मिलाएर बनाइएका दरबार, शहर, किल्ला, मठ–मन्दिर, रथ, पुल आदिको वर्णन छ।
विश्वकर्मा, मय आदिलाई बृहस्पति, भृगु, कश्यप आदि ऋषिद्वारा लिखित वास्तुशास्त्र अनुसारको संरचना निर्माण गर्ने वैदिक वास्तुतन्त्रविद् मानिएको छ।
वास्तुपुरुष (वास्तुदेवता) लाई भूमिदेव पनि भनिन्छ। अन्धक राक्षसलाई मार्दा आएको भगवान शिवको पसिनाबाट वास्तुपुरुष उत्पत्ति भए, भन्छ पौराणिक कथा।
अन्धक राक्षसको रगत पिएका र शिवबल पाएका वास्तुपुरुषले स्वर्गमा आतंक मच्चाएपछि ८१ देवदेवीले उनलाई समातेर पृथ्वीमा पठाई भूमिदेवता बनाइदिएको उल्लेख छ।
त्यसपछि भूमिदेवता बनेका वास्तुपुरुषलाई पूजा गरेर उनको शिर, पाउ, नाभी, खुट्टा, हात आदि स्थानमा बसेका देवताको आराधना गरी संरचना निर्माण गर्ने संस्कृतिको सुरुआत भयो।
भारतमा धेरै पहिलेदेखि अभ्यासमा रहेको वास्तु अहिले नेपालमा बौरिएको हो। राणाहरूले भवन निर्माणमा बेलायती शैली अपनाएकाले नेपालमा यो विद्या ढिलो आएको हो।
ऋषिमुनिको पालामा जे–जे गरियो, अहिले त्यही दोहोर्यालउन खोज्नु भनेको २०० वर्षअघि भानुभक्तले लेखेको बधू शिक्षा अनुसार घर र समाज चलाउन खोज्नु जस्तो हो।
डा. वासुदेवकृष्ण शास्त्रीले लेखेको ‘वास्तु―शास्त्र ज्ञान’ नामक पुस्तकका अनुसार, वास्तुशास्त्रले माटोको रंग अनुसार घडेरीको वर्गीकरण गरेको हुन्छ– ब्राह्मणी, क्षेत्रीय, वैश्य र शूद्र भनेर। ब्राह्मणी घडेरीको माटो छुँदा नरम, मीठो स्वाद आउने, सेतो कमेरो जस्तो सफा हुन्छ भन्दोरै’छ त्यो वास्तुशास्त्र। यस्तो घडेरी सर्वोत्तम रे!
रातो, कठोर, चाम्रो र डल्ला परेको माटो भएको क्षेत्रीय घडेरी उत्तम रे! यसैगरी, अमिलो स्वाद आउने पहेंलो अथवा हरियो रंगको माटो हुने वैश्य घडेरी रे! अरर्र परेको, कालो र स्वाद नमीठो माटो हुने शूद्र घडेरी आवासका लागि नराम्रो रे!
वास्तुशास्त्रमा पलाएको यस्तो ऐंजेरु मनको फेदबाटै उखेलेर फाल्न लायक छ। यस्तो व्याख्याले वास्तु बिटुलिन्छ।
नेपालीको मौलिक वास्तुशास्त्र
सानो टुक्रा जग्गामा वैदिक वास्तु अनुसार घर बनाउनु त्यसै पनि गाह्रो काम हो। त्यसमाथि, दक्षिणलाई अशुभ भन्ने वास्तुशास्त्र काठमाडौं जस्तो चिसो उपत्यकाका लागि अनुकूल छैन। र पनि, मानिसहरू दक्षिण–पूर्वी मोहडाको जग्गा खोजिरहेका हुन्छन्।
दक्षिण र पूर्व खुला भएको घर न्यानो बन्छ। गर्मी ठाउँमा भने वैदिक वास्तुशास्त्र अनुसार घर बनाउन सजिलै हुन्छ। दक्षिणपट्टि दिनभर घामले पोल्ने हुँदा त्यता भर्यावङ, स्टोर, ग्यारेज आदि राखेर उत्तरतिर शयनकक्ष, पढ्ने कोठा, बैठक बनाउने चलन छ।
यस्तो वास्तुसँग पश्चिमा विज्ञान पनि मिल्छ। काठमाडौं लगायतका एकाध ‘कुचुक्क’ परेका शहर बाहेकका ठाउँमा जग्गाको समस्या खासै नभएकोले फुकेर घर बनाउन जसरी पनि मिलिहाल्छ।
हाम्रा पुर्खाले लामो समयको अभ्यासबाट यहींको हावापानी सुहाउँदो मौलिक वास्तुकला सिर्जना गरेको छँदैछ। थारू लगायतका तराईवासीले मधेशको गर्मीमा स–साना र शीतल घर बनाउने विद्या जानेका छन्।
हिमालवासीले चिसोबाट बचाउने कलात्मक घर बनाएका छन्। पहाडतिरका घुमाउने घर र काठमाडौं उपत्यकाका काष्ठकला सहितका पाखायुक्त छानाका घरहरू नेपाली पहिचान बनेका छन्।
भूकम्पीय जोखिमबारे पढेका आजका इन्जिनियरहरू सम्म परेको लाम्चो या वर्गाकार जग्गामा त्यही आकारका घर बनाउनु भन्छन्। घर बनाउँदा शुभ–अशुभको घेरोबाट माथि उठेर शीतल, न्यानो, सफा र स्वस्थकर हुने उपाय अपनाऔं।
पूर्वीय सभ्यताको वास्तुविज्ञानलाई अविश्वास र अन्धविश्वासको घेरोबाट बचाउनेहरूको जय होस्।
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