संस्कृति
और भूमंडलीकरण
विश्वासों, परम्पराओं और मूल्यों के संग्रह को संस्कृति कहते हैं जिसे समाज क्रमशः अपनी परिपूर्णता के दौरान प्राप्त करते हैं और मनुष्यों की पीढ़ियां मूल्यवान धरोहर के रूप में उन्हें अपने बाद वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ जाती हैं। हर समाज की व्यवस्था व आधार उसी समाज की मूल्यवान संस्कृतियां होती हैं। दूसरी ओर भूमंडलीकरण वह चीज़ है जिसने आर्थिक ,राजनीतिक और सांस्कृतिक आयाम से मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित किया है। भूमंडलीकरण की एक चुनौती समाजों की विभिन्न संस्कृतियों पर प्रभाव डालना है। आज राष्ट्रों की संस्कृतियों का एक दूसरे के निकट हो जाना सूचना के आदान प्रदान और तकनीक, कम्प्यूटर तथा सेटेलाइट में विस्तार का परिणाम है।
प्राचीन समय से मानवीय सभ्यता एवं संस्कृति का केन्द्र होने के नाते एशिया महाद्वीप को विश्ववासियों के निकट विशेष स्थान प्राप्त रहा है। इस महाद्वीप की एक महत्वपूर्ण विशेषता ईरान, चीन, भारत और मैसोपोटामिया जैसे क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों व सभ्यताओं का होना है जो अपने भीतर राष्ट्रीय, जातिय, धार्मिक और वैचारिक विविधता लिये हुए हैं। अतः भूमंडलीकरण के इस दौर में मूल्यों की सुरक्षा और एशियाई संस्कृति के स्थान को ऊंचा उठाना संकृतिक के इस कानून की अद्वितीय विशेषओं व योग्यता की सही पहचान पर निर्भर है। समझ-बूक्ष और राष्ट्रों के मध्य सहकारिता के लिए संस्कृति महत्वपूर्ण आधार है और वह सदैव मानवीय सभ्यता में विस्तार की भूमिका रही है इसी बात के दृष्टिगत देशों के मध्य सांस्कृतिक आदान- प्रदान में वृद्धि भी बहुत महत्व रखती है। एशिया महाद्वीप ने इतिहास के समस्त कालों में संस्कृति व सभ्यता के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संस्कृति में जो विविधता मौजूद है उसके दृष्टिगत हर चीज़ से अधिक आवश्यक, संस्कृति से संबंधित विचारों व दृष्टिकोणों के आदान- प्रदान के लिए भूमि समतल करना है। भूमंडलीकरण की तीव्र प्रक्रिया और उसकी उपलब्धियों पर क़ब्जा जमाने हेतु पश्चिमी देशों के प्रयासों के दृष्टिगत हर समय से अधिक इस समय एशियाई देशों के मध्य सांस्कृतिक मतभेदों को कम करने और उनके मध्य समन्वय व समरसता को अधिक करने का आभास किया जा रहा है। सांस्कृतिक समरसता का अर्थ समान सांस्कृतिक विशेषताओं को मज़बूत करना है और भूमंडलीकरण की चुनौतियों से मुकाबले के लिए एक संयुक्त नीति अपनाये जाने की आवश्यकता है।
एशियाई देशों के अधिकारियों और विशेषज्ञों की उपस्थिति से सेमिनारों का आयोजन सांस्कृतिक समन्वय उत्पन्न करने का बेहतरीन मार्ग है और कई वर्षों से ये कार्य विभिन्न एशियाई देशों में हो रहा है। इसी सिलसिले का एक सेमिनार अभी १२-१३ फरवरी को तेहरान में आयोजित हुआ था जिसका शीर्षक था” संस्कृति और एशिया में भूमंडलीकरण” इस सेमिनार में एशिया में संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय अध्ययनकर्ताओं, संस्थाओं एवं संगठनों ने भाग लिया और इस सेमिनार में चार कार्यकारी समितियों के रूप में संस्कृति से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में विचारों का आदान- प्रदान किया गया। संस्कृति व कला/ कला और धर्म/ स्थानीय संस्कृतियां/ भूमंडलीकरण की पहचान और संस्कृति व पहचान/ इस सेमिनार में चर्चा के मुख्य विषय थे। इस सेमिनार में भाग लेने वाले अध्ययनकर्ताओं एवं विशेषज्ञों ने सिनेमा, वास्तुकला और पारम्परिक कलाओं व हस्त उद्योगों को भूमंडलीकरण से जोड़ने के संबंध में विचारों का आदान- प्रदान किया। इसी प्रकार धर्मों के मध्य मौजूद समानताओं और एशियाई देशों के संबंधों की स्थापना में उनका प्रभाव इस सेमिनार में चर्चा का दूसरा विषय था।
“संस्कृति और एशिया में भूमंडलीकरण” शीर्षक के अंतर्गत तेहरान में होने वाले सेमिनार में भाग लेने वालों ने एशिया महाद्वीप में रहने वालों की संस्कृतियों एवं उनकी भूमिका पर बल दिया। इसी प्रकार इन लोगों ने एशियाई भाषाओं और संस्कृतियों की विशेषताओं को सुरक्षित करने पर भी बल दिया। इसके अतिरिक्त इस सेमिनार में भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में संचार माध्यमों की भूमिका एवं उनके प्रभावों पर भी ध्यान दिया गया।
भूमंडलीकरण का अर्थ उन बहसों में से है जिसके बारे में विस्तृत पैमाने पर चर्चा किये जाने के बावजूद उसका अर्थ अब भी अस्ष्ट है परंतु इसके अर्थ के संबंध में पाई जाने वाली अस्पष्टता कुछ क्षेत्रों में कम तो कुछ क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट है।
संस्कृति, भूमंडलीकरण के जटिल व चर्चा योग्य विषयों में से है जिसकी हर पहलु से समीक्षा की जा सकती है।
यद्यपि संस्कृतियों में विविधता एवं अधिकता का विभिन्न तरीक़े से जीवन गुजारने की भांति लाभ है परंतु कुछ लोगों का मानना है कि भूमंडलीकरण की दिशा में यही चीज़ रुकावट भी है। सांस्कृतिक विविधता का लाभ यह है कि हर संस्कृति, अनुभवों और उस संस्कृति से संबंध रखने वाले समस्त मनुष्यों के व्यवहार व आचरण का खजाना लिये होती है जो उनके लिए मूल्यवान होती है और उस पर ध्यान दिया जाता है। इस आधार पर एक संस्कृति, दूसरी संस्कृतियों से अपनी तुलना करके और उनकी विशेषताओं का पता लगाकर उनसे लाभ उठाती है और वह अधिक समृद्ध हो जाती है परंतु दूसरी ओर सांस्कृतिक विविधता, विभिन्न भाषाओं, जातियों और धर्मों से यह भी संभव है कि इनसे भूमंडलीकरण की एकता व समरसता खतरे में पड़ जाये। तो किस तरह विभिन्न संस्कृतियों के सम्मान के साथ भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के प्रति आशान्वित रहा और उसे व्यवहारिक बनाने के लिए कार्यक्रम बनाया जा सकता है?
भूमंडलीकरण के पक्षधर विचारकों का यही विषय एक विरोधाभास भी है। यानी जिस सीमा तक भूमंडलीकरण से सांस्कृतिक लेन देन के नये अवसर उत्पन्न हो जायेंगे उसी सीमा तक पक्षपात और भेदभाव जैसी समस्याएं भी सामने आ सकती हैं। अजनबियों के साथ लड़ाई व विवाद, जातिवाद, जातिय लड़ाई, भेदभाव, दूसरों को नकारना और पक्षपात जैसी समस्याएं, जो अधिकांश राष्ट्रवाद व जातिवाद का परिणाम हैं, आज विश्व समाज की सभ्यता में ध्यान योग्य प्रगति के बावजूद समाप्त नहीं हुई हैं और हिंसा व नाना प्रकार की समस्याएं आज के समाज में यथावत बनी हुई हैं।
जब हम गहन व सूक्ष्म दृष्टि से मानव इतिहास को देखते हैं तो पाते हैं कि संस्कृतियों में पूर्ण टाइल्स के टुकड़ों की भांति एक दूसरे से अलग व भिन्न रहने के बजाये एक दूसरे से मिलने का रुझान पाया जाता है। यह एसी स्थिति में है जब हम यह जानते हैं कि विश्व के सामाजिक ढांचे में हर संस्कृति, एक दूसरे से भिन्न कारणों से अस्तित्व में आई है और संस्कृति के अलग व कई होने का अर्थ उनकी पहचान का भिन्न होना है और पूरे इतिहास में संस्कृतियों की पहचान जितना अधिक स्पष्ट हुई है उनके मध्य एक दूसरे की ओर रुझान भी अधिक था तथा मनुष्यों ने विभिन्न शैलियों से एक दूसरे से सांस्कृतिक आदान- प्रदान पर ध्यान दिया। यह रुझान इतना अधिक था कि जब एक राजा या देश दूसरे पर आक्रमण करके उस पर विजय प्राप्त कर लेता था तब भी वह न तो इस रुझान को समाप्त कर सका और न ही इसके मुकाबले में प्रतिरोध कर सका और दीर्घावधि में उसने परास्त जाति व राष्ट्र की संस्कृति को स्वीकार कर लिया।
इस समय मानव समाज एसी स्थिति में है कि जब लगभग छोटे- बड़े समस्त तत्व विभिन्न स्तर पर परिवर्तित हो रहे हैं। इस मध्य संस्कृति है जो मानव जीवन के दूसरे विषयों से अधिक प्रभावी व व्यापक है और वह परिवर्तित हो रही है।
संस्कृति और संस्कृति के भूमंडलीकरण के संबंध में संस्कृति शास्त्रियों ने चार दृष्टिकोण प्रस्तुत किये हैं। प्रथम गुट का मानना व कहना है कि भूमंडलीकरण के कारण समस्त संस्कृतियां धीरे धीरे एक हो जायेंगी और विश्व में एक ही संस्कृति रहेगी जबकि दूसरे गुट का कहना है कि भूमंडलीकरण, विश्व में मौजूद परिस्थिति के स्थिर तथा छोटी संस्कृतियों के मज़बूत व सुदृढ़ होने का कारण बनेगा। इस संबंध में तीसरे गुट का कहना है कि संस्कृति के संबंध में भूमंडलीकरण के क्षेत्र में ध्यान योग्य प्रगति नहीं होगी और एक संस्कृति के साथ बहुसंस्कृति भी होगी जबकि चौथे गुट का कहना है कि भूमंडलीकरण, संस्कृतियों के बिखर जाने का कारण बनेगा और उनकी सीमाएं एक दूसरे से मिल जायेंगी।
जो कुछ इस समय दिखाई दे रहा है वह इस बात का सूचक है कि पश्चिमी यह चाह रहे हैं कि भूमंडलीकरण उस तरह से हो जिस तरह से हम चाह रहे हैं यानी विश्व की सारी संस्कृतियों पर हमारी संस्कृति हावी हो जाये जबकि उनकी यह इच्छा बहुसंस्कृति के सिद्धांत से मेल नहीं खाती है। अब समय आ गया है कि सरकारें विश्व में मौजूद छोटी- बड़ी संस्कृतियों को सुरक्षित एवं मज़बूत बनायें तथा दूसरों को यह बतायें और उन्हें प्रोत्साहित करें कि ये संस्कृतियां मनुष्य की मूल पूंजी व धरोहर हैं और भाषाई, जातिय, धार्मिक और सांस्कृति सिद्धांतों को मज़बूत बनायें। अलबत्ता केवल यह नीति पर्याप्त नहीं हैं। राष्ट्रों व क़ौमों के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में समानताओं को पैदा करना और उन्हीं समानताओं के आधार पर संपर्कों को मज़बूत करना भूमंडलीकरण की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण एवं सही कार्य है। अतः इन्हीं दोनों बातों को ध्यान में रखकर शांति, हिंसा रहित और मनुष्यों के मध्य शांतिपूर्ण भविष्य की कामना की जा सकती है।
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