नेहा मित्तल
भारत की संस्कृति देश के इतिहास से जुड़ी हुई है। भारत का
ऐतिहासिक स्मारक ‘ताजमहल’ विश्व की प्रसिद्ध इमारतों में से एक है। अब यह
इमारत शाहजहाँ के राजवंश का प्रतीक मात्र रह गई है। अनेक राजा, महाराजा तथा
राजवंशज विभिन्न ऐतिहासिक स्मारक अपने प्रतीक के रूप में छोड़ गए हैं।
भारत में दो प्रकार की सांस्कृतिक धरोहर हैं। पहला है भौतिक धरोहर, जिसे
स्पर्श कर सकते हैं। और दूसरी है अदृश्य धरोहर, जिसे हम देख नहीं सकते, सुन
नहीं सकते लेकिन इतिहास उसे बयाँ करता है। हज़ारों वर्षों से भारत में अनमोल
ऐतिहासिक स्थल हैं। 1972 में यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक
धरोहरों की सुरक्षा के लिए नियम बनाया था।
भारत सरकार के नियमों के तहत धारा 49 के अनुसार हर राज्य सरकार को हर स्मारक,
स्थान तथा ऐतिहासिक वस्तु की रक्षा करनी चाहिए। अनेक स्मारकों एवं वस्तुओं को
भारत सरकार ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक महत्ता दी है। धारा 51 (अ) में लिखा गया
है कि हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह भारत की सांस्कृतिक धरोहर की
रक्षा करे।
|
इमारतों के प्रति इंसानी बर्बरता के कारण स्मारक गायब होते
जा रहे हैं। भारत में इमारतों के लुप्त हो जाने का एक और कारण यह है कि
पुरानी इमारतों को तोड़कर नई इमारतें बनाई जा रही हैं। भारत में सातवीं
सदी में कश्मीर पर आक्रमण किया गया था।
|
|
|
सन् 2007 में यूनेस्को ने घोषित किया कि विश्व में 830
सांस्कृतिक धरोहर हैं उनमें से 27 भारत में हैं। सन् 1983 में भारत में स्थित
अजंता-एलोरा तथा ताजमहल को विश्व की प्रथम सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया गया।
खजुराहो के स्मारक, साँची के बौद्ध मठ, हुमायूँ का मकबरा भी प्रसिद्ध हैं।
2007 में यूनेस्को ने लाल किले को भी ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया।
कहा जाता है कि भारत के संग्रहालय प्राकृतिक परिवेश से ओत-प्रोत हैं। भारतीय
संग्रहालय तथा नेशनल पुस्कालय के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर श्यामल कांती गांगुली ने बताया कि सांस्कृतिक धरोहर के विनाश होने
के दो कारण हैं। कई सालों से भारत की ऐतिहासिक इमारतों पर भारी वर्षा, कड़ी
धूप तथा तेज हवाओं के कारण इन स्मारकों में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उभर
रही हैं। कहीं दीवार में दरार पड़ रही है तो कहीं इमारतों की छतें ध्वस्त हैं।
इमारतों के प्रति इंसानी बर्बरता के कारण स्मारक गायब होते जा रहे हैं। भारत
में इमारतों के लुप्त हो जाने का एक और कारण यह है कि पुरानी इमारतों को
तोड़कर नई इमारतें बनाई जा रही हैं। भारत में सातवीं सदी में कश्मीर पर आक्रमण
किया गया था।
अँग्रेजों ने अपने शासन के दौरान भारत के स्मारकों में परिवर्तन लाने का
व्यापक प्रयास किया था। लॉर्ड बैंटिक ने भी मुगल गार्डन में परिवर्तन लाने की
कोशिश की थी। हड़प्पा तथा मोहन जोदड़ो के ऐतिहासिक अंश से मुल्तान, लाहौर तथा
राजस्थान के रेलमार्ग निर्मित किए गए थे। साँची स्तूप के स्तम्भ पत्थरों को
धोबी कपड़े धोने में प्रयोग करते थे। पर्यावरण में अधिक मात्रा में कार्बन
डाइऑक्साइड होने के कारण ताजमहल पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कुछ पर्यटकों ने
जाने-अनजाने में इन स्मारकों पर दाग अंकित किए हैं। कई मंदिरों से भगवान की
प्रतिमाएँ चुराई गई हैं तो कई बार उन्हें नुकसान भी पहुँचाया है।
स्मारकों को पहुँची इस हानि के लिए हम किसको जिम्मेदार समझें? सरकार को या आम
इंसान को। सरकार द्वारा सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए
नियम पर्याप्त नहीं हैं। देखा गया है कि आम आदमी में इन ऐतिहासिक समारकों के
प्रति कोई जागरूकता नहीं है। जितने भी नियम बनाए गए हैं तथा जितने भी सम्मेलन
आयोजित किए गए हैं, सब विफल रहे हैं।
क्योंकि इन नियमों से भारतीय जनता अनभिज्ञ है। चाहे वह व्यक्ति शिक्षित हो या
अशिक्षित, सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर लोगों में ऐतिहासिक स्थलों
के प्रति जागरूकता बढ़ाना होगी। इंडियन नेशन ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल
हेरीटेज (इनटैक) तथा इकोमोस जैसे गैर-सरकारी संस्थानों को बढ़ावा देना चाहिए।
इस कदम से भारत की सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक धरोहर सुरक्षित हो सकती है।
|
No comments:
Post a Comment